बाल लीलाएँ

जिसके अनेक रूप और हर रूप की लीला अद्भुत। प्रेम को परिभाषित करने वाले, उसे जीने वाले इस माधव ने जिस क्षेत्र में हाथ रखा वहीं नए कीर्तिमान स्थापित किए। माँ के लाड़ले, जिनके संपूर्ण व्यक्तित्व में मासूमियत समाई हुई है। कहते तो लोग ईश्वर का अवतार हैं, पर वे बालक हैं तो पूरे बालक।

माँ से बचने के लिए कहते हैं- मैया मैंने माखन नहीं खाया। माँ से पूछते हैं- राधा इतनी गोरी क्यों है, मैं क्यों काला हूँ? 'यशोदा माँ' कान्हा से कोई शिकायत नहीं है?

मुख में पूरी पृथ्वी दिखा देने, न जाने कितने मायावियों, राक्षसों का संहार कर देने के बाद भी माँ यशोदा के लिए तो वे घुटने चलते लल्ला ही थे कभी किसी काम में कोई दोष नहीं होता। सूरदास ने बालक कृष्ण के भावों का मनोहारी चित्रण प्रस्तुत किया जिसने यशोदा के कृष्ण के प्रति वात्सल्य को अमर कर दिया। यशोदा के इस लाल की जिद भी तो उसी की तरह अनोखी थी 'माँ मुझे चाँद चाहिए।'

व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं। माँ के सामने रूठने की लीलाएँ करने वाले बालकृष्ण हैं तो अर्जुन को गीता का ज्ञान देने वाले योगेश्वर कृष्ण। मन में सबका सम्मान है। मानते हैं कि सभी को अपने अनुसार जीने का अधिकार है।

बहन के संबंध में लिए गए अपने दाऊ के उस निर्णय का उन्होंने प्रतिकार किया जब दाऊ ने यह तय कर लिया कि वह बहन सुभद्रा का विवाह अपने प्रिय शिष्य दुर्योधन के साथ करेंगे। तब कृष्ण ही ऐसा कह सकते थे कि 'स्वयंवर मेरा है न आपका, तो हम कौन होते हैं सुभद्रा के संबंध में फैसला लेने वाले।' समझाने के बाद जब दाऊ नहीं माने तो कृष्ण ही हो सकते हैं कि बहन को अपने प्रेमी के साथ भागने के लिए कह सके।

महाभारत युद्ध, जिसके नायक भी वे हैं पर कितनी अनोखी बात है कि युद्ध में उन्होंने शस्त्र नहीं उठाए! महाभारत एक विशाल सभ्यता के नष्ट होने की कहानी है। श्रीकृष्ण जैसा व्यक्तित्व ही शिरोधार्य कर सकता है।

कथा है जिसमें श्रीकृष्ण ने तय किया कि अब सुधार असंभव है। राजभवन में ही स्त्रियों की यह स्थिति है राज-दरबार में ही राजवधू का चीरहरण सारे कथित प्रबुद्ध लोगों के सामने हो सकता है तब ऐसे समाज में कोई सुरक्षित भी नहीं है, साथ ही ऐसे समाज को खड़े रहने का कोई अधिकार भी नहीं।

संदेश दिया- हे अर्जुन उठा शस्त्र! तू तो मात्र निमित्त होगा!