महाबली की पूंछ तक न हिला सके भीम!


महाबली की पूंछ
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महाभारत काल में जब पांडव पुत्र अपना बारह वर्ष का वनवास पूर्ण कर चुके थे और अज्ञातवास का एक वर्ष पूर्ण करने के लिए छुपे-छुपे फिर रहे थे तभी वे राजस्थान के अलवर के समीप इस स्थान पर पहुंचे।उस समय उन्हें राह में दो पहाड़ियां आपस में जुडी नजर आईं जिससे उनका आगे का मार्ग अवरुद्ध हो रहा था तब माता कुंती ने अपने पुत्रों से पहाड़ी को तोड़ रास्ता बनाने को कहा।
माता का आदेश सुनते ही महावली भीम ने अपनी गदा से एक भरपूर प्रहार किया जिससे पहाड़ियों को चकनाचूर कर रास्ता बना दिया। भीम के इस पौरुष भरे कार्य को देश उनकी माता और भाई प्रशंसा करने लगे जिससे भीम के मन में अहंकार पैदा हो गया।
भीम का यह अहंकार तोड़ने के लिए हनुमानजी ने योजना बनाई और आगे बढ़ रहे पांडवों के रास्ते में बूढ़े वानर का रूप रखकर लेट गए। जब पांडवों ने देखा कि जिस राह से उन्हें गुजरना है वहां एक बूढा वानर आराम कर रहा है तो उन्होंने उससे रास्ता छोड़ने का आग्रह करते हुए कहा कि वह उनका रास्ता छोड़ कहीं और जाकर विश्राम करे।
पांडवों का आग्रह सुन हनुमानजी ने कहा कि वे बूढ़े होने के कारण हिलडुल नहीं सकते अतः पांडव किसी दूसरे रास्ते से निकल जाएं। अपने अहंकार में चूर भीम को हनुमानजी की यह बात अच्छी नहीं लगी और हनुमानजी को ललकारने लगे।
भीम की ललकार सुन हनुमानजी ने बड़े ही नम्र भाव से कहा कि वे उनकी पूंछ को हटाकर निकल जाएं लेकिन भीम उनकी पूंछ को हटाना तो दूर हिला भी न सके और अपने अहंकार पर पछताने लगे साथ ही हनुमानजी से  क्षमा याचना करने लगे।
भीम के द्वारा क्षमा याचना करने पर हनुमानजी अपने असली रूप में आए और बोले- तुम वीर ही नहीं महाबली हो लेकिन वीरों को इस तरह अहंकार शोभा नहीं देता। इसके बाद हनुमानजी भीम को महाबली होने का वरदान देकर वहां से विदा हो गए लेकिन वह स्थान जहां वे लेटे थे आज भी उनके प्रसिद्ध धाम के रूप में पूज्य है।

हनुमान मंदिर का निर्माण जंगल में ही रहने वाले एक संत निर्भायादास ने कराया है। प्रत्ति मंगलवार और शनिवार को इस मंदिर में हनुमानजी के इस अद्भुत रूप के दर्शन करने भक्तों का मेल सा लगता है। यहीं से कुछ दूरी पर वह पहाड़ी भी मौजूद है जिसे भीम ने गदा से चकनाचूर रास्ता बनाया था। इस पहाड़ी को भीम पहाड़ी के नाम से जाना जाता है।