माता लक्ष्मी को श्राप?

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लक्ष्मी को श्राप


लक्ष्मी और श्रीविष्णु वैकुण्ठ में बैठे सृष्टि-निर्माण के विषय में वार्तालाप कर रहे थे। तभी किसी बात से क्रोधित होकर लीलामय भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी को अश्वी बनने का श्राप दे दिया। इससे लक्ष्मी जी अत्यंत दुःखी हुईं। 


श्री हरि को प्रणाम कर देवी लक्ष्मी मृत्युलोक में चली गईं। पृथ्वी लोक में भ्रमण करते हुए देवी लक्ष्मी सुपर्णाक्ष नामक स्थान पर पहुँची। इस स्थान के उत्तरी तट पर यमुना और तमसा नदी का संगम था। सुंदर पेड़-पौधे उस स्थान की शोभा बढ़ा रहे थे। देवी लक्ष्मी उसी स्थान पर अश्वी रूप धारण करके भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करने लगीं।

कालांतर में, देवी लक्ष्मी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए और कहा-“हे कल्याणी! श्री हरि जगत के स्वामी हैं। मुक्ति प्रदान करने वाले ऐसे भगवान श्री विष्णु को छोड़कर तुम मेरी आराधना क्यों कर रही हो? पति की सेवा करना स्त्रियों के लिए सनातन धर्म माना गया है। फिर नारायण तो सब के लिए परम-पूज्य हैं?”

तब देवी लक्ष्मी बोलीं-“भगवन! श्रीविष्णु से मिले श्राप के कारण ही मैं पृथ्वी लोक पर निवास कर रही हूँ। उन्होंने उस श्राप से छुटकारा पाने का उपाय बताते हुए कहा कि जब मुझसे एक पुत्र उत्पन्न होगा, तब मैं श्राप से मुक्त  हो जाऊँगी। 

मैं इस तपोवन में आ गई। किंतु भगवान श्री विष्णु इस समय वैकुण्ठ में विराजमान हैं। उनके अभाव में मैं पुत्रवती कैसे हो सकती हूँ?  अतः हे महादेव! आप ऐसा कुछ कीजिए, भगवान श्री हरि और मेरा संभव मिलन हो सके।”

लक्ष्मी जी की बात सुनकर भगवान शिव बोले-“देवी! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ और तुम्हें वर देता हूँ कि तुम्हारी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए श्री हरि शीघ्र ही अश्वरूप में यहाँ पधारें। तुम उनके जैसे एक पुत्र की जननी बनो। तुम्हारा पुत्र एकवीर के नाम से प्रसिद्ध होगा। इसके बाद तुम भगवान श्री हरि के साथ वैकुण्ठ चली जाओगी।”

लक्ष्मी जी को वर देकर भगवान शिव कैलाश लौट गए। कैलाश पहुँचकर भगवान शिव ने अपने परम बुद्धिमान गण चित्ररूप को दूत बनाकर श्री हरि के पास भेजा। चित्ररूप ने भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी की तपस्या और भगवान शिव के द्वारा उन्हें वर देने की बात विस्तार से बताई।

श्राप से मुक्त करने के लिए श्री हरि ने एक सुंदर अश्व का रूप धारण कर उनके साथ योग किया।

इसी प्रकार लक्ष्मी श्राप से मुक्त किया और भगवान  विष्णु के साथ वैकुण्ठ गईं।